खुशियां खरीदने निकलते हैं घर से
बड़ी बड़ी दुकानों से चुन कर लाते हैं
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खुद के लिए बटोरते हैं कभी
तो कभी घरवालों के लिए ले आते हैं
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बहुत मेहनत से कमाते हैं पैसा
मलाल भी होता है की यूँही लुटा आते हैं
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करें भी तो क्या करें हम बेचारे
शॉपिंग के सामान इतनी जल्दी पुराने जो हो जाते हैं
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डब्बे में भर पुराने कपड़े खिलोने किताबें
ज़रूरतमंद संस्थाओं को दे आते हैं
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और फिर, ‘मेरे पास कुछ नया नहीं है’ कह कर
खुशियां खरीदने हम घर से निकल जाते हैं
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