भरी थी अदालत, आये थे सियासतदान
एक के बाद एक, हुआ ऐलान,
सूरज पर इलज़ाम लगा
कि वो डूबकर अंधेरा फैलाता है
जज साहब ने इस तथ्य पर मोहर लगायी, और सूरज को,
अस्त न होने का फरमान दिया
मजबूर था सूरज जो इधर
उधर चाँद भी परेशान था
‘मेरे होने का क्या मतलब
गर मैं अँधेरे को रोशन ना कर सकूँ’
चाँद पर विरोध करने का इलज़ाम लगा
जज साहब ने इस तथ्य पर मोहर लगायी,और चाँद को,
ज़मीन पर उतरने की सज़ा सुनाई
फिर तारों की बारी आयी
उन पर टूट कर गिरने का इलज़ाम लगा
जज साहब ने इस तथ्य पर मोहर लगायी,और तारों के,
बाहर निकलने पर पाबन्दी लगायी
बस यूँ ही हवा, पानी, फूलों, पेड़ों की भी बारी आयी
और जज साहब ने एक के बाद एक, सभी को सज़ा सुनाई
अंत में बस बची थी, ये कलम,
जो हर लम्हे को शिददत से बयाँ कर रही थी
इस कलम पर आवाम को भड़काने का इलज़ाम लगा
जज साहब ने इस तथ्य पर मोहर लगायी और
