क्यों ऐसा भला सितम करता है
जितना भी हो, हमेशा कम् सा लगता है
तेरे ना होने से, ना होने का एहसास रवां था
अब होने से भी, कम् होने का डर सा लगता है
बदला तूँ नहीं, बदल मैं गया हूँ, मेरी बदनसीबी है,
पैसे की दौड़ में लगा हूँ,
सब्र की कब्र पर खड़ा हूँ,
याद नहीं आते मुझे, जो मेरे करीबी हैं
तेरे बिना, और तेरे होने पर
दिल तो आज भी बेहाल है
कहाँ हैं वो, ढूंढ रहा था जो खुशियां
हर पल चुभता ये सवाल है
कर आज़ाद मुझे इससे, जो तेरी ये गिरफ्त है
कैद कर किसी और को
जहाँ में बाकी अभी, लाखों की शिकस्त है